विवशता के कोनों में
मौन खड़ी है
दीर्घायु का श्राप लिए
बहती नदी…
अनन्त कालों से
संजोयी थी जो
उसने अपने
अन्दर मिठास
आज नीर निधि
के विशाल वक्षस्थल
के आलिंगन से उस
बहती नदी की तमाम
सक्रियता समाप्त हो जायेगी
और वह हो जायेगी खारी
शायद अनन्तकालों तक…

नदी स्त्री है
समन्दर पुरुष

स्त्री सम्मोहन
गुरुत्वाकर्षण से
कहीं ज्यादा होता है
तो क्यों नहीं
समन्दर लाँघकर अपने तट
बहता है ऊपर
बहुत ऊपर
उस सबसे ऊँचे
हिमनद पर
जहाँ से उद्गम होती
है नदी
जहाँ बैठी है नदी
शाम्भवी मुद्रा में
और हो जाता मीठा

शायद स्त्री की
शिवत्व पाने की
लालसा सबसे बड़ी
होती है इसलिए
मिट जाता है उसका
वजूद समन्दर में मिलकर

लेकिन क्या वो पाती है शिवत्व को?