स्त्री से बात करने के लिए
निश्चित तौर पर
तुम में होना चाहिए सलीक़ा
फिर सीखो
उसे सुनते जाना
उसकी चुप्पी के आयाम तक
कभी आज़माओ
ख़ुद भी बातें बनाना
कभी चुप हो जाना
स्त्रियाँ परखती हैं
कभी-कभी सिरे तोड़कर
मध्य की सुदृढ़ता
तो साफ़ नीयत रख
तुम्हें आना चाहिए
समुद्री यात्रा में
तारे पहचान रास्ता निकालना
जैसे एक दिन
अच्छी-ख़ासी, आत्मीय बतकही के बाद
वह कहे
कि अब उसे चलानी है साइकिल, स्कूटी या कार
या जाना है कहीं पैदल या पंखों पर सवार
तो तुम अलविदा कहकर चुप रहोगे
कुछ दिन
या ख़ूब दिन
जब दोबारा करनी हो बात
तो शुरुआत कर सकते हो
यह पूछने से
कि उस दिन से अब तलक
कैसा चल रहा सफ़र!
देवेश पथ सारिया की कविता 'ईश्वर (?) को नसीहत'