हमारी कोशिश है कि हिन्दी में साहित्य को एक उबाऊ, वर्चस्ववादी, जातिवादी और केवल कलावादी दृष्टिकोण से दूर, एक सहज और समावेशी रंग में ढालने की, जहाँ न केवल साहित्यकार बल्कि साहित्य और भाषा भी अपने पूर्वाग्रहों और रूढ़ मानसिकता को पीछे छोड़ unlearn करने के लिए तैयार दिखते हों।
कोशिश है ऐसे रचनाकारों का काम प्रस्तुत करते रहने की, जो समाज में व्याप्त और फलती-फूलती गन्दगी को बिना किसी लाग-लपेट के चुनौती देने का चुनाव करते हैं, चाहे वह पितृसत्ता हो या साम्प्रदायिकता या फिर व्यक्तिगत आज़ादी पर लगी हुई बंदिशें!
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