राजपाल एण्ड सन्ज़ से प्रकाशित असग़र वजाहत की किताब ‘भीड़तंत्र’ से साभार
स्वार्थ का फाटक
—“हिंसा का रास्ता कहाँ से शुरू होता है?”
—“जहाँ से बातचीत का रास्ता बंद हो जाता है।”
—“बातचीत का रास्ता कहाँ से बंद होता है?”
—“जहाँ स्वार्थ का फाटक खुला होता है।”
—“धरती पर ग़रीब रहते हैं।”
—“धरती के नीचे अपार सम्पदा है।”
—“ग़रीब को हटाओ।”
—“ग़रीब विरोध करेगा।”
—“विरोध दबाओ।”
—“हिंसा फूट पड़ेगी।”
—“हिंसा का उत्तर हिंसा से दो।”
—“हिंसा बढ़ेगी।”
—“चिंता मत करो।”
—“जो बड़ी हिंसा होगी वह जीतेगी।”
—“संसार यही झेलता है।”
—“पेट की आग को।”
—“हिंसा की आग से दबाता है।”
—“स्वार्थ की पताका लहराता है।”
—“हिंसा भड़काता है।”
—“हिंसा अंधी है।”
—“सबको अंधा बनाती है।”
—“आदमी को संख्या बनाती है।”
जानवर और आदमी
—“हम लगातार असभ्य होते जा रहे हैं।”
—“अंधकार युग था, जब आदमी को जानवर से बेहतर मानते थे।”
—“एक समय आया, जब आदमी और जानवर को बराबर मानने लगे।”
—“और अब हम जानवर को आदमी से श्रेष्ठ मानते हैं।”
—“हमारी धारणा बनाने में जानवरों का कोई योगदान नहीं है।”
—“यह विश्वास कि जानवर आदमी से श्रेष्ठ है, हमने अर्जित किया है।”
—“कैसे?”
—“क्योंकि आजकल जानवर को आदमी नहीं, बल्कि जानवर आदमी को पाल रहा है।”
असग़र वजाहत की कहानी 'स्विमिंग पूल'