अनुवाद: पुनीत कुसुम

एक
मैं अपनी डायरी में कुछ बेतरतीब शब्द लिखती हूँ
और कहती हूँ उसे बाइबिल
जिसमें ‘प्रेम’ अन्तिम शब्द है

दो
‘यकीन’ जैसे शब्दों के नीचे मैं लिखती हूँ तुम्हारा नाम
मैं नहीं चाहती तुम यकीन करना छोड़ दो
ऐसे प्रत्येक शब्द के तले, अंकित है-
“टूटे भरोसे फलते हैं और अधिक प्रेम में..”

तीन
अब पता है मुझे कि क्यों तुम मेरी डायरी का अन्तिम शब्द कभी नहीं पढ़ पाते
तुम अनजान हो इसके अर्थ से
मैं चाहूँगी अनजान ही रहो
इसीलिए नीचे प्रेम के, लिख देती हूँ- ‘पीर’

चार
बाइबिल अब एक टूटे भरोसों की किताब है
मैं बहुत ज़्यादा और तुम कुछ भी नहीं जानते जिसके बारे में
क्योंकि तुम्हारे साथ बिताए गए वक़्त में
मेरे यकीन टूटते रहे
तुम्हारे, अक्षुण्ण

पाँच
मैं करती हूँ दुआ
और लिखती हूँ ‘उम्मीद’
कौन कहता है प्रेम केवल एक बार होता है

छः
देखो मुझे मिल गया
अपनी डायरी के आख़िरी पन्ने पर
मेरी उखड़ती चमड़ी
और टूटे पिंजर के नीचे
उम्मीद की ओट में मैंने लिख छोड़ा था- ‘स्वयं हेतु’