जालियों के छेद
इतने बड़े तो हों ही
कि एक ओर की ज़मीन में उगी
घास का दूसरा सिरा
छेद से पार होकर
साँस ले सके
दूजी हवा में

तारों की
इतनी भर रखना ऊँचाई
कि हिबिस्कॅस के फूल गिराते रहें
परागकण, दोनों की ज़मीन पर

ठीक है,
तुम अलग हो
पर ख़ून बहाने के बारे में सोचना भी मत
बल्कि अगर चोटिल दिखे कोई
उस ओर भी
तो देर न करना
रूई का बण्डल और मरहम
उसकी तरफ़ फेंकने में

बहुत कसकर मत बांधना तारों को
यदि खोलना पड़े उन्हें कभी
तो किसी के चोट न लगे
गाँठों की जकड़न सुलझाते हुए

दोनों सरहदों के बीच
‘नो मेंस लैंड’ की बनिस्पत
बनाना ‘एवेरीवंस लैंड’
और बढ़ाते जाना उसका दायरा

धर्म में मत बांधना ईश्वर को
नेकनीयत को मान लेना रब
भेजना सकारात्मक तरंगों के तोहफ़े

बाज़वक़्त
तारबंदी के आरपार
आवाजाही करती रहने पाएँ
सबसे नर्म दुआएँ!

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देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।