निबन्ध | Essay
‘गेहूँ बनाम गुलाब’ – रामवृक्ष बेनीपुरी
‘गेहूँ बनाम गुलाब’ – रामवृक्ष बेनीपुरी गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्त होता है। गेहूँ बड़ा या गुलाब? हम क्या चाहते हैं – Read more…
‘गेहूँ बनाम गुलाब’ – रामवृक्ष बेनीपुरी गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्त होता है। गेहूँ बड़ा या गुलाब? हम क्या चाहते हैं – Read more…
‘धोखा’ – प्रतापनारायण मिश्र इन दो अक्षरों में भी न जाने कितनी शक्ति है कि इनकी लपेट से बचना यदि निरा असंभव न हो तो भी महा कठिन तो अवश्य है। जबकि भगवान रामचंद्र ने Read more…
‘स्त्री: दान ही नहीं, आदान भी’ – महादेवी वर्मा संपन्न और मध्यम वर्ग की स्त्रियों की विवशता, उनके पतिहीन जीवन की दुर्वहता समाज के निकट चिरपरिचित हो चुकी है। वे शून्य के समान पुरुष की Read more…