Tag: A poem of feminism

bhartendu harishchandra

परदे में क़ैद औरत की गुहार

लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो। सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं देत्यो॥ लहँगा दुपट्टा नीको न लागै। मेमन का गाउन मँगाय नाहीं देत्यो॥ वै गोरिन हम रंग सँवलिया। नदिया प...
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