Tag: A poem on daughter
अड़े कबूतर उड़े ख़याल
इक बोसीदा मस्जिद में
दीवारों मेहराबों पर
और कभी छत की जानिब
मेरी आँखें घूम रही हैं
जाने किस को ढूँढ रही हैं
मेरी आँखें रुक जाती हैं
लोहे के उस...
शैली बेटी के नाम
तुझे जब भी कोई दुःख दे
इस दुःख का नाम बेटी रखना
जब मेरे सफ़ेद बाल
तेरे गालों पे आन हँसें, रो लेना
मेरे ख़्वाब के दुःख पे सो लेना
जिन खेतों...