Tag: A poem on daughter

Munawwar Rana

अड़े कबूतर उड़े ख़याल

इक बोसीदा मस्जिद में दीवारों मेहराबों पर और कभी छत की जानिब मेरी आँखें घूम रही हैं जाने किस को ढूँढ रही हैं मेरी आँखें रुक जाती हैं लोहे के उस...
Sara Shagufta

शैली बेटी के नाम

तुझे जब भी कोई दुःख दे इस दुःख का नाम बेटी रखना जब मेरे सफ़ेद बाल तेरे गालों पे आन हँसें, रो लेना मेरे ख़्वाब के दुःख पे सो लेना जिन खेतों...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)