Tag: a poem on environment and global warming

अचेतन

अक्सर बैठे घिसती रहती हूँ चेतना लोगों की कि कहीं किसी कोने में छिपा सम्वेदना का जिन्न मुझसे आकर पूछे- "क्या हुक्म मेरे आक़ा?" और मैं झट से उसे पांडोरा के...
Smoke, Industry, Pollution

धुआँ

कारखानों के धुएँ का रंग, काला होता है क्योंकि, उसमें लगा है खून, किसी मरी हुई तितली का, फूल का, शजर का धुआँ जो फैला हुआ है ज़मीन से...
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