Tag: A poem on Koyal

Shridhar Pathak

कोयल

कुहू-कुहू किलकार सुरीली कोयल कूक मचाती है, सिर और चोंच झुकाए डाल पर बैठी तान उड़ाती है। एक डाल पर बैठ एक पल झट हवा से...
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