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वह तोड़ती पत्थर
'Wah Todti Patthar', a poem by Suryakant Tripathi Nirala
वह तोड़ती पत्थर!
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले...
काम चालू है
उस कमरे में घना अंधेरा है
लकड़ियों के उखड़े हुए फट्टे पड़े हैं इधर-उधर
जिनमें धँसी हुई हैं कीलें
जो पलक झपकते ही हो सकती हैं रक्तिम
बिजली...