Tag: A poem on labors

Suryakant Tripathi Nirala

वह तोड़ती पत्थर

'Wah Todti Patthar', a poem by Suryakant Tripathi Nirala वह तोड़ती पत्थर! देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले...
Ankush Kumar

काम चालू है

उस कमरे में घना अंधेरा है लकड़ियों के उखड़े हुए फट्टे पड़े हैं इधर-उधर जिनमें धँसी हुई हैं कीलें जो पलक झपकते ही हो सकती हैं रक्तिम बिजली...
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