Tag: A poem on Poet

Viren Dangwal

कवि

मैं ग्रीष्म की तेजस्विता हूँ और गुठली जैसा छिपा शरद का उष्म ताप मैं हूँ वसन्त में सुखद अकेलापन जेब में गहरी पड़ी मूँगफली को छाँटकर चबाता फ़ुरसत से मैं...
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