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ईनाम
"सारस का गला लम्बा था, चोंच नुकीली और तेज थी। भेड़िये की वैसी हालत देखकर उसके दिल को बड़ी चोट लगी। भेड़िये के मुँह में अपना लम्बा गला डालकर सारस ने चट् से काँटा निकाल लिया और बोला- 'भाई साहब, अब आप मुझे ईनाम दीजिए!'..."
इस कहानी को अगर बच्चों को सुनाया जाए और इस स्थान पर पॉज करके पूछा जाए कि भेड़िये ने सारस को क्या ईनाम दिया होगा.. तो उनके जवाब आपको विवश कर देंगे कि आप इस कहानी का अंत उन्हें न बताएँ! लेकिन कहानियाँ होती ही हैं 'स्वाभाविक' और 'व्यवहारिक' की समझ देने के लिए! :)
मिट्ठू
आज भी गली-मोहल्लों में गली में रहने-फिरने वाले जानवरों को परेशान करते लोग मिल जाएंगे.. यह आम दिन की बात है, जबकि होली और दिवाली जैसे त्योहारों पर तो ये जानवर दूसरी ही दुनिया ढूँढने लगते हैं.. ऐसा इसलिए होता है कि बच्चों को उनके बचपन से ही जानवरों से स्नेह, दया और लगाव जैसे भाव रखना नहीं सिखाया गया.. उन्होंने हमेशा अपने बड़ों को जानवरों को दुत्कारते ही देखा..
ऐसे में प्रेमचंद की यह कहानी अगर आप अपने घर के बच्चों को पढाएंगे या सुनाएंगे तो शायद उनके मन में से जानवरों के प्रति भय और घिन्न थोड़ी दूर हो!