Tag: A story on partition
शरणदाता
"देखो, बेटा, तुम मेरे मेहमान, मैं शेख साहब का, है न? वे मेरे साथ जो करना चाहते हैं, वही मैं तुम्हारे साथ करना चाहता हूँ। चाहता नहीं हूँ, पर करने जा रहा हूँ। वे भी चाहते हैं कि नहीं, पता नहीं, यही तो जानना है। इसीलिए तो मैं तुम्हारे साथ वह करना चाहता हूँ जो मेरे साथ वे पता नहीं चाहते हैं कि नहीं... "
विभाजन की एक और कहानी, जो बताती है कि जब दो सम्प्रदायों की सदियों पुरानी एकता और भाईचारे पर एक 'मंशा' के साथ चोट की जाती है तो ऊपर से दिखने वाला सौहार्द भी ज़्यादा दूरी तक नहीं टिक पाता... कभी मज़बूरी के चलते और कभी बस समय के फेर में!
तक़्सीम
"इस सन्दूक के माल में से मुझे कितना मिलेगा।”
सन्दूक पर पहली नज़र डालने वाले ने जवाब दिया, “एक चौथाई।”
“बहुत कम है।”
“कम बिल्कुल नहीं, ज़्यादा है.. इसलिए कि सबसे पहले मैंने ही इस पर हाथ डाला था।”
“ठीक है, लेकिन यहाँ तक इस कमर तोड़ बोझ को उठा के लाया कौन है?”
“आधे आधे पर राज़ी होते हो?”
“ठीक है… खोलो सन्दूक।”