Tag: Aashutosh Panini

शरणार्थी

हाय ! कैसी दशा आज आई है । घर-घर में मातम छाई है । वृद्ध-बेबस माता-पिता की लाचारी है । दो टुकड़े रोटी पाने की आस निरंतर जारी है । घर में ही बने...

बेपरवाह

जब थी जरूरत, उठी नहीं एक बार भी हूक। अब समय ही न शेष रहा, तब जगी है मंजिल पाने की भूख।
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