Tag: Aayush Maurya
घर पूछता है
जाने डगर में जाकर
अनजाने राह में भटककर
थोड़ा रुककर
सुस्ताकर
क्या बेझिझक
याद नहीं करते हो अपना घर?
वैक्यूम में
साइंसदान कहते हैं कि
कि ढुलकते नहीं आँसू
'वैक्यूम' में
उसकी अनुपस्थिति से उभरे
वैक्यूम में
ढुलकते हैं आँसू उसके
रुकते नहीं...
साइंसदान भी कभी-कभी
कुछ भी कहते हैं..
सिगरेट का टुर्रा
सूरज को हर रोज़ तलब लगती है
सो वो जला लेता है एक सिगरेट
आसमां को चेहरे के सामने रखकर
हवा रोकता है
और उतनी देर तक उफ़क़...
ब्रह्मा-विष्णु-महेश
"निर्माता निर्माण से दूर हैं
फिर भी (या इसलिए ही) पूजे जा रहे हैं.."
कलयुग में शब्द अपने अर्थ बदल चुके हैं और चित्र अपने स्वरूप! ऐसे में निर्माण, संरक्षण और ध्वंस की परिभाषाएँ न बदलें, ऐसा संभव नहीं। पढ़िए त्रिमूर्ति को आज के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित करती यह कविता..।
भर दूँ इन फासलों को
नींद में थी तूम
जब कार में आजू-बाजू बैठे थे हम
तुम्हारा सर मेरे कंधों पर क़ाबिज़ था
मन हुआ मेरा
कि क़ाबिज़ कर लूं तुम्हारी कमर
रखकर हाथ...
न्यूटन का तीसरा नियम
राजनेताओं की अकर्मण्यता की आड़ में जनता की जड़ता, लापरवाही और नैतिक ढुलमुलपन छिप जाते हैं और उसके बचाव में जनता के पास एक ब्रह्मास्त्र भी है- 'न्यूटन का तीसरा नियम'। इसी ब्रह्मास्त्र ने इस कविता में सटीक लक्ष्य भेदा है! अनूठा व्यंग्य है, पढ़ कर देखिए!
चुप रहने से
चुप रहने से
निष्पक्ष नहीं हो जाते
चुप रहने से
कम नहीं होती अदु की अदावतें
चुप रहने से
बनता नहीं कोई शांति दूत
चुप रहने से
घाव भर नहीं जाते
चुप...