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होना चाहता हूँ
वह अहसास
जो भरते हो ख़ुद में
खिले गुलाब को देखकर
वह क़िस्सा
हँसते हो जिस पर उन्मुक्त
बच्चों की तरह
वह आकाश
तुम्हारे मन का
उगता रहे इंद्रधनुष
अपने कुलीन रंग में जहाँ
वही
वही...
शाम
'Shaam', Hindi Kavita by Abhishant
1.
अन्त में उतर जाता है ताप किरणों का
धूप पड़ जाती है नर्म धीरे-धीरे
सूरज भी मुलायम मन से
शाम-रंग का अंगोछा उठाये
चल...