Tag: Abhishek Ramashankar
खुलना
अगर सिगरेट के कश गिनकर लिखता मैं कविता
महज चार महीनों में
लिख चुका होता एक ग्रंथ, सोलह महाकाव्य, इक्यानवे किताबें और
पिछले साल अक्टूबर से दिसंबर...
हर बार
हर बार
कुछ ना कुछ
रह जाता है – लिखने को
हर बार
कुछ ना कुछ
चूक जाता है – नज़र से
हर बार
कुछ ना कुछ
भूल जाता हूँ – सब...
मुक्तिबोध और मैं
कमरे के कोने में इक बोरी है
बोरी में कचरे का ढेर है
कचरे के ढेर में कुछ किताबें हैं
मैं चाहता हूँ जलाना, किताबें
बोझिल कमरे को...
शब्दों का पुल
"सड़क उठी और उठी और फ्लाईओवर हो गई!"
"वाह! जब तुम्हें कविता ही करनी थी तो इंजीनियरिंग क्यों की?"
"मालूम नहीं, नहीं बता सकता!"
"हाँ जानती हूँ,...
तुम्हारे जाने के बाद
'Tumhare Jane Ke Baad', a poem by Abhishek Ramashankar
सूख जाएँगे पेड़, कबूतरों को विस्मरण हो जायेगा ज्ञान दिशाओं का, संसार के सारे जल स्रोत...