Tag: Adarsh Bhushan

Adarsh Bhushan

मौन

हथेलियों पर बिखरा मेरी, तुम्हारी हथेलियों का स्पर्श, हमारे बीच के मौन का सम्वाद है जैसे गोधूलि और साँझ के बीच आकाश मौन होता है प्रकृति का सम्वाद मनुष्य से उसके आध्यात्म के अनन्त के पार अपनी अप्रतिम...
Adarsh Bhushan

क्षणिकाएँ

Poems: Adarsh Bhushan 1 स्त्रियों के जितने पर्यायवाची तुम व्याकरण की किताब में ढूँढते रहे, एक पर्याय तुम्हारे घर के कोने में अश्रुत क्रन्दन और व्यथित महत्त्वाकाँक्षाओं के बीच पड़ा रहा। 2 इस शहर की परतों से डर लगता...
War, Blood, Mob, Riots

भीड़

'Bheed', a poem by Adarsh Bhushan भीड़ ने सिर्फ़ भिड़ना सीखा है, दस्तक तो सवाल देते हैं भूखी जून के अंधे बस्त के टूटे विश्वास के लंगड़े तंत्र के लाइलाज स्वप्न के- कि इस बार चुनाव...
Protest, People

नज़रिया

'Nazariya', a poem by Adarsh Bhushan तुम्हें बेवजह देशद्रोही ठहरा दिया जाएगा जब अपना हक़ माँगोगे घूसे बरसा दिए जाएँगे तुम्हारे उन्हीं अधरों पर जिनसे चंद मिनटों पहले तुमने अपनी पहली...

धुँध

'Dhundh', a poem by Adarsh Bhushan ये जो धुँध सी छायी है न बस एक छलावा है, घेर रखी है इसने सिर्फ़ दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण ही बदल दिया है। श्वेत...
Adarsh Bhushan

राम की खोज

'Ram Ki Khoj', a poem by Adarsh Bhushan मुझे नहीं चाहिए वो राम जो तुमने मुझे दिया है, त्रेता के रावण का कलियुग में संज्ञा से विशेषण होना और एक नयी...
Leopold Staff

लियोपोल्ड स्टाफ की कविताएँ

Poems by Leopold Staff, a Polish poet अनुवाद: आदर्श भूषण क्या तुम? तुम मुझे बुलबुल, गुलाबों और चाँद की प्रशंसा करने से मना करते हो, ये शायद लगते हों...
Adarsh Bhushan

ऐसे ही लिखी गयी होंगी कई कविताएँ

'Aise Hi Likhi Gayi Hongi Kai Kavitaaein', a poem by Adarsh Bhushan ऐसे ही लिखी गयी होंगी कई कविताएँ, जब कोई कवि अपने जीवन का सबसे मुश्किल दौर...
India Tricolor - Bharat Tiranga

मैं केवल भारत नहीं

'Main Kewal Bharat Nahi', Hindi Kavita by Adarsh Bhushan मैं ठहराव हूँ, मैं खोज नहीं किसी की, आवाज़ हूँ, जज़्बात हूँ, जंगम हूँ, स्थावर नहीं, शुष्क हूँ, नम हूँ, शताब्दियों की शृंखला हूँ, मैं शिथिल हूँ, मैं भारत नहीं, मैं केवल...
Adarsh Bhushan

बीती उम्र की लड़की

'Beeti Umr Ki Ladki', a poem by Adarsh Bhushan खेत में चहकती हुई चिड़ियों को उड़ाते-उड़ाते, और बाग़ीचों से आम तोड़कर भागते, पता नहीं कब मेरा बचपन...
Adarsh Bhushan

मैं तो कहीं भी नहीं दिखता

मैं तो कहीं भी नहीं दिखता, ना शाश्वत ना सीमित; मेरा दिखना जायज़ भी नहीं। शायद मुझे तुम धर्म में देखना शुरू कर दो या रंगो में, जो युगान्तरकालीन मरणशील हाड़-मांस...
Adarsh Bhushan

बोझ

यह कविता यहाँ सुनें: https://youtu.be/KUtFhk9GFqA एक बोझ था; मेरे अंदर जो लिए घूमता था, ट्रेनों में, बसों में, सड़कों पर, आज उसी चौराहे पर उतार दिया है वो बोझ, जहाँ सब शुरू हुआ था, निश्चय...
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