Tag: Adarsh Bhushan

Adarsh Bhushan

स्त्रीत्व का अनुपात

मेरे शब्द हमेशा अधूरे रहे कविताओं के मध्य; सिर्फ़ उन भावों में जहाँ पौरुष; स्त्रीत्व के समानुपात में रहना था लेकिन शब्दों के अनुतान में; बड़े बेढब तरीक़े से व्युत्क्रम में...
Crackers, Diwali, Light, Celebrations

हमारे हिस्से की दिवाली

"मैंने लिस्ट बनाकर टेबल पर रख दी है। जाकर सारा सामान ले आओ। ऋषि को भी साथ ले कर जाना। और ये लो पैसे..."...
Adarsh Bhushan

नींद

बस आ जाती है; मत पूछो! कैसे? कब? चंद उलझनों के बीच, लड़खड़ाते; नींद छू लेती है पलकों और आँसुओं के ठीक किनारे के दायरों को; और वो जो उठती गिरती परछाईं होती है अँधेरे में...
Pray, Kid's Hand

धरती ने अपनी त्रिज्या समेटनी शुरू कर दी है

मेरी तबीयत कुछ नासाज़ है बस ये देखकर कि ये विकास की कड़ियाँ किस तरह हाथ जोड़े भीख मांग रही हैं मानवता के लिए मैं कहता हूँ कि बस परछाईयाँ...
Adarsh Bhushan

दर्पण को घूरते-घूरते

आज कुछ सत्य कहता हूँ, ईर्ष्या होती है थोड़ी बहुत, थोड़ी नहीं, बहुत। लोग मित्रों के साथ, झुंडों में या युगल, चित्रों से, मुखपत्र सजा रहें हैं.. ऐसा मेरा कोई मित्र नहीं। कुछ...
duvidha

दुविधा (मुक्तिबोध की कविता ‘मुझे कदम कदम पर’ से प्रेरित)

कविताएँ अपने पाठकों के भीतर बहुत कुछ जगा देती हैं और उन्हें बहुत जगह भी देती हैं जिसमें कुछ न कुछ चुपचाप बैठा रहता...
pathik

पथिक

चलते-चलते रुक जाओगे किसी दिन, पथिक हो तुम, थकना तुम्हारे न धर्म में है ना ही कर्म में, उस दिन तिमिर जो अस्तित्व को अपनी परिमिति में घेरने लगेगा, छटपटाने...
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