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ये पहाड़ वसीयत हैं
ये पहाड़ वसीयत हैं—
हम आदिवासियों के नाम
हज़ार बार
हमारे पुरखों ने लिखी है,
हमारी सम्पन्नता की आदिम गंध हैं ये पहाड़।
आकाश और धरती के बीच हुए...
प्रतीक्षा
चुप क्यों हो संगी?
कुछ तो कहो!
पैरों के नीचे धरती के अन्दर
कोयले के अन्तस में छुपी
आग के बावजूद
इतनी ठण्डी क्यों है तुम्हारी देह?
झारखण्ड की
विशाल पट्टिकाओं में रेंगते
ताम्बे...
राम दयाल मुण्डा की कविताएँ
सूखी नदी/भरी नदी
सूखी नदी
एक व्यथा-कहानी
जब था पानी
तब था पानी!
भरी नदी
एक सीधी कहानी
ऊपर पानी, नीचे पानी।
विरोध
उसे बाँधकर ले जा रहे थे
राजा के सेनानी
और नदी
छाती पीटकर...
आदिवासी होस्टल के बच्चे
घर की कच्ची दीवारों में कभी गूँजी नहीं कोई प्रार्थना
यहाँ सुबह-शाम ज़ोर से गानी होती हैं प्रार्थनाएँ
ताकि मास्टरजी को लगे बच्चे संस्कृति से जुड़ रहे हैं
आदिवासी...
उतनी दूर मत ब्याहना बाबा
बाबा!
मुझे उतनी दूर मत ब्याहना
जहाँ मुझसे मिलने जाने की ख़ातिर
घर की बकरियाँ बेचनी पड़ें तुम्हें
मत ब्याहना उस देश में
जहाँ आदमी से ज़्यादा
ईश्वर बसते हों
जंगल नदी...
आदिवासी प्रेमी युगल
'Adivasi Premi Yugal', a poem by Joshnaa Banerjee Adwanii
वो झारखंड ज़िले के संथल से
बत्तीस किलोमीटर दूर ऊसर भूमि
पर वास करती है
आँखों में वहनि-सा तेज
सूरत से...
अनुवाद
'Anuvaad', a poem by Amar Dalpura
प्रेम हमेशा मौन का अनुवाद करता है
जैसे आँख का अनुवाद आँख करती है
स्पर्श का अनुवाद स्पर्श करता है
एक आदिवासी...
आदिवासी लड़कियों के बारे में
ऊपर से काली
भीतर से अपने चमकते दाँतों
की तरह शान्त धवल होती हैं वे
वे जब हँसती हैं फेनिल दूध-सी
निश्छल हँसी
तब झर-झराकर झरते हैं
पहाड़ की कोख...
क्यों बीरसा मुण्डा ने कहा था कि वह भगवान है?
बीरसा मुण्डा, जिसके पूर्वज जंगल के आदि पुरुष थे और जिन्होंने जंगल में जीवन को बसाया था, आज वही बीरसा और उसका समुदाय जंगल की धरती, पेड़, फूल, फल, कंद और संगीत से बेदखल कर दिया गया है! उनके पास खाने को नमक नहीं, लगाने को तेल नहीं, पहनने को कपड़ा नहीं! जमींदार और महाजनों के कर्जों में डूबी यह जाति खुद को मुण्डा कहलाने में भी शर्म महसूस करती है। सदियों के दमन ने उन्हें विश्वास दिला दिया है कि मुण्डाओं का तो जीवन ही है इस श्राप को भोगते रहना। और नए कानूनों के चलते, किस्मत, अंधविश्वासों और टोन-टोटकों में फँसा यह समुदाय जंगल के कठोर जीवन में रहने के लायक भी नहीं रहा। ऐसे में बीरसा, एक छोटी उम्र का नौजवान मिशन के स्कूल में थोड़ा पढ़कर, बंसी बजाकर, नाच-गाकर एक दिन खुद को इस समुदाय का भगवान घोषित कर देता है, और मुण्डा लोग उसे भगवान मानने लगते हैं, क्योंकि उन्हें बताया गया था कि एक दिन भगवान मुण्डाओं में ही जन्म लेगा और उनका उद्धार करेगा।
बीरसा ने - जिसकी अपने समुदाय के अधिकारों व स्वाभिमान के लिए लड़ने के कारण अंग्रेजों द्वारा एक साजिश के तहत पच्चीस साल की छोटी उम्र में हत्या कर दी जाती है - ऐसा क्यों किया और ऐसा करने से उसे क्या मिला, इसकी एक समझ मिलती है महाश्वेता देवी के उपन्यास 'जंगल के दावेदार' के इस अंश से! ज़रूर पढ़िए!