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Makhanlal Chaturvedi

वायु

चल पड़ी चुपचाप सन-सन-सन हवा, डालियों को यों चिढ़ाने-सी लगी, आँख की कलियाँ, अरी, खोलो ज़रा, हिल स्वपतियों को जगाने-सी लगी, पत्तियों की चुटकियाँ झट दीं बजा, डालियाँ कुछ ढुलमुलाने-सी लगीं, किस...
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