Tag: Alok Dhanwa

Alok Dhanwa

सफ़ेद रात

पुराने शहर की इस छत पर पूरे चाँद की रात याद आ रही है वर्षों पहले की जंगल की एक रात जब चाँद के नीचे जंगल पुकार रहे थे...
Alok Dhanwa

प्यार

पुराने टूटे ट्रकों के पीछे मैंने किया प्यार कई बार तो उनमें घुसकर लतरों से भरे कबाड़ में जगह निकालते शाम को अपना परदा बनाते हुए अक्सर ही...
Alok Dhanwa

सवाल ज़्यादा हैं

पुराने शहर उड़ना चाहते हैं लेकिन पंख उनके डूबते हैं अक्सर ख़ून के कीचड़ में! मैं अभी भी उनके चौराहों पर कभी भाषण देता हूँ जैसा कि मेरा काम रहा वर्षों से लेकिन...
Alok Dhanwa

भूल पाने की लड़ाई

उसे भूलने की लड़ाई लड़ता रहता हूँ यह लड़ाई भी दूसरी कठिन लड़ाइयों जैसी है दुर्गम पथ जाते हैं उस ओर उसके साथ गुज़ारे दिनों के भीतर से उठती आती है...
Alok Dhanwa

गोली दाग़ो पोस्टर

यह उन्नीस सौ बहत्तर की बीस अप्रैल है या किसी पेशेवर हत्यारे का दायाँ हाथ या किसी जासूस का चमड़े का दस्ताना या किसी हमलावर की दूरबीन...
Alok Dhanwa

जनता का आदमी

बर्फ़ काटने वाली मशीन से आदमी काटने वाली मशीन तक कौंधती हुई अमानवीय चमक के विरुद्ध जलते हुए गाँवों के बीच से गुज़रती है मेरी कविता; तेज़...
Alok Dhanwa

भागी हुई लड़कियाँ

1 घर की ज़ंजीरें कितना ज़्यादा दिखायी पड़ती हैं जब घर से कोई लड़की भागती है क्या उस रात की याद आ रही है जो पुरानी फ़िल्मों में बार-बार आती थी जब...
Alok Dhanwa

मुलाक़ातें

अचानक तुम आ जाओ इतनी रेलें चलती हैं भारत में कभी कहीं से भी आ सकती हो मेरे पास कुछ दिन रहना इस घर में जो उतना ही तुम्हारा भी है तुम्हें...
Alok Dhanwa

फ़र्क़

आलोक धन्वा की कविता 'फ़र्क़' | 'Farq', a poem by Alok Dhanwa देखना एक दिन मैं भी उसी तरह शाम में कुछ देर के लिए घूमने निकलूँगा और...
Alok Dhanwa

चौक

उन स्त्रियों का वैभव मेरे साथ रहा जिन्‍होंने मुझे चौक पार करना सिखाया। मेरे मोहल्‍ले की थीं वे हर सुबह काम पर जाती थीं मेरा स्‍कूल उनके रास्‍ते...
Alok Dhanwa

अचानक तुम आ जाओ

इतनी रेलें चलती हैं भारत में कभी कहीं से भी आ सकती हो मेरे पास कुछ दिन रहना इस घर में जो उतना ही तुम्हारा भी है तुम्हें देखने की प्यास...
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