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2050 की कविता
'2050 Ki Kavita', a poem by Anubhav Bajpai
तुमने वादा किया था
नहीं लौटोगे
पर अब
जब तुम लौट रहे हो
मेरी इच्छा है
कि
कुछ किताबों के साथ लौटो
हो सके...
बिना सिग्नल का चौराहा
'Bina Signal Ka Chauraha', a poem by Anubhav Bajpai
बिना सिग्नल के चौराहे पर
बादलों के नीचे
चौराहे से कुछ क़दम पीछे
खड़ा मैं
सोचता हूँ बारे में
ट्रैफ़िक हवलदार...
जय श्रीराम
जो दर दर भटकते थे
जिनको ज़रूरत थी
रोज़गार की
उन्हें वो लोग मिले
जो थे दीवाने
धर्म के रक्षक
महान विद्वान
जिन्हें चाहिए था
हिन्दू राष्ट्र
ये लोग थे मतवाले
फ़ाक़ा करने वाले
घोर...
ऑफ़िस
'Office', a poem by Anubhav Bajpai
मैं देखता हूँ
ऑफ़िस के सहकर्मी पुरुषों को
देखता हूँ
उनकी आँखें
टिकी हैं
महिला सहकर्मियों के
स्तनों पर
कूल्हों पर
देखता हूँ
महिला सहकर्मियों को
पाता हूँ उनकी...
दुविधा में हूँ
मैं जाता हूँ
जिसके भी पास
पाता हूँ एक लाश
दुविधा में हूँ
जलाऊँ
या दफ़्न करूँ
पूछना चाहता हूँ
उनका धर्म
हिचकता हूँ
पूछने में
उनके उत्तर की कल्पना
रोक लेती है मुझे
यदि वो...
बह जाने का डर
मैं पानी का बहना देख रहा हूँ। पानी अपने साथ कितने सपने, यादें और न जाने कितनी गतियाँ बहाये लिये जा रहा है। इसके...
‘भद्दी तस्वीर’ और ‘मन्दिर और रोटी’
Poems by Anubhav Bajpai
भद्दी तस्वीर
मैं मोबाइल कैमरे से
तस्वीर उतारता हूँ
पक्की सड़क के
बीचोबीच
घास चरती
ऑफिस की घरेलू
नग्न स्त्रियों की
और उनकी
योनियाँ निहारते
तार्किक वैज्ञानिक
पुरुषों की
मन्दिर और रोटी
पुरुषों ने
मंदिर...