Tag: Anupma Vindhyavasini

कण-कण में है बसता प्रेम

नए सवेरे जैसा उजला, कड़ी धूप सा जलता प्रेम कभी साँझ के थके सूर्य सा, थोड़ा-थोड़ा ढलता प्रेम कभी क्षितिज जैसा आभासी, दूर से ही बस दिखता प्रेम हृदय तले...

बारिश

बारिश! पुनः प्रतीक्षा की बेला के पार तुम लौट आई हो असीम शांति धारण किए हुए... तुम्हारे बरसने के शोर में समाया है समूची प्रकृति का सन्नाटा... तुम्हीं तो रचती हो सम्पूर्ण...

क्रोध

क्रोध सिर्फ़ वही नहीं है जो बताया गया है अब तक - एक क्षणिक आक्रोश, क्रोध, दुःख और विवशता का चरम स्तर भी है क्रोध, अपने अस्तित्व की खोज की राह में,...

मैंने देखा है

मैंने देखा है बादल पिघलते हुए आसमानों को बारिश में ढलते हुए लोग कहते, परिंदों के पर होते हैं मैंने देखा है उनको भी चलते हुए चांद को...
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