Tag: Assamese Poetry
अपने लिए
करता हूँ कृतित्व सारा
मैं अपने नाम
जितने हैं द्वार
जीवन-मरण के बीच
खोले हैं ख़ुद मैंने
प्रतिदिन
फिर ख़ुद ही आबद्ध हुआ
किसी वृत्त में,
अस्थिर हो
खोया मैंने ज्ञान-विवेक
तोड़ी सीमाएँ सभ्यता...
चिरैया
चिरैया नहीं जानती
क्यों हैं वो चिरैया
मैं उसके, केवल उसके
पंखों में सिमटकर
सो जाना चाहता हूँ
खो जाना चाहता हूँ
उस नन्ही चिरैया से भी
अधिक निःस्व हूँ मैं
उससे...
चिरश्री
अभी तो हुई थी हमारी मुलाक़ात
पिछली रात
विजय इंटरनेशनल के
भीतरी प्रांगण में
कोणार्क से कानों-कान आयी
छोटी-सी ख़बर फैली
जंगल की आग-सी
छू गयी जलस्त्रोत
चन्द्रभागा के
मुझे बुलवाया था तुमने
अनजाने...
पर्वत के उस पार
पर्वत के उस पार
कहीं लो बुझी दीपशिखा
इस पार हुआ धूसर नभ
उतरे पंछी कुछ अजनबी
नौका डूबी...
उस पार मगर वो पेड़
ताकता रहा मौन
मृदु-मन्द सुरीली गुहार
देता रहा...