Tag: Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

जुगनू

पेड़ पर रात की अँधेरी में जुगनुओं ने पड़ाव हैं डाले या दिवाली मना चुड़ैलों ने आज हैं सैकड़ों दिये बाले तो उँजाला न रात में होता बादलों से भरे...
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

घर देखो-भालो

आँखें खोलो भारत के रहने वालो घर देखो-भालो, सम्भलो और सम्भालो! यह फूट डालती फूट रहेगी कब तक यह छेड़-छाड़ औ' छूट रहेगी कब तक यह धन की...
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

प्रचलित हिन्दी की दुरूहता

"लगभग भारतवर्ष में बोली जानेवाली समस्त प्रधान भाषाओं का नमूना मैंने आपके सामने उपस्थित कर दिया, आप देखेंगे कि सभी भाषाओं में संस्कृत शब्दों का प्रयोग अधिकता से हो रहा है। जो तामिल, कनाड़ी और मलयालम् स्वतंत्र भाषाएँ हैं, अर्थात् आर्य भाषा से प्रसूत नहीं हैं, उनमें भी संस्कृत शब्दों की प्रचुरता है। उन भाषाओं को कोई स्पर्द्धा उर्दू से नहीं है, फिर वे क्यों संस्कृतगर्भित हैं?"
Hariaudh

एक तिनका

"मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा आ अचानक दूर से उड़ता हुआ एक तिनका आँख में मेरी पड़ा..." और फिर उस तिनके ने जीवन की एक बहुमूल्य सीख दे दी! :)
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

हिन्दुस्तानी भाषा की उत्पत्ति

"भाषा जिस पथ से चल पड़ती है, व्याकरण उसका साक्षीमात्र है।"
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

ठेठ हिन्दी और बोलचाल की भाषा

अब प्रश्न यह होगा कि क्या ठेठ हिन्दी बोलचाल की भाषा कही जा सकती है? मेरा विचार है, नहीं, कारण बतलाता हूँ, सुनिये। जिन प्रान्तों...
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

ठेठ हिन्दी

"प्रत्येक तत्सम शब्द उधार लिया हुआ है। यह उधार हिन्दी को अपनी दादी (संस्कृत) से लेना पड़ता है। यदि मैं अपने सम्बन्धियों तथा मित्रों से प्रायः ऋण लेने की आदत डालूँ तो मैं विनष्ट हो जाऊँगा।"
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

बोलचाल की भाषा

बोलचाल की भाषा के बारे में कुछ लिखना टेढ़ी खीर है। जितने मुँह उतनी बात सुनी जाती है। यदि यह बात सत्य न हो...
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

बंदर और मदारी

देखो लड़को, बंदर आया, एक मदारी उसको लाया। उसका है कुछ ढंग निराला, कानों में पहने है बाला। फटे-पुराने रंग-बिरंगे कपड़े हैं उसके बेढंगे। मुँह डरावना आँखें छोटी, लंबी दुम थोड़ी-सी...
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

सरिता

किसे खोजने निकल पड़ी हो जाती हो तुम कहाँ चली ढली रंगतों में हो किसकी तुम्हें छल गया कौन छली। क्यों दिन–रात अधीर बनी–सी पड़ी धरा पर रहती हो दु:सह...
Hariaudh

जागो प्यारे

उठो लाल अब आँखें खोलो, पानी लायी हूँ, मुँह धो लो बीती रात कमल दल फूले, उनके ऊपर भँवरे डोले चिड़िया चहक उठी पेड़ पर, बहने लगी हवा अति सुन्दर नभ में...
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

फूल और काँटा

हैं जन्म लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता। मेह उन...
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