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Babu Gulab Rai

मेरी दैनिकी का एक पृष्ठ

"बहुत से लोग तो जीवन से छुट्टी पाने के लिए कला का अनुसरण करते हैं किन्तु मैं कला से छुट्टी पाने के लिए जीवन में प्रवेश करता हूँ।" "भुस खरीदकर मुझे भी गधे के पीछे ऐसे ही चलना पड़ता है, जैसे बहुत से लोग अकल के पीछे लाठी लेकर चलते हैं। कभी-कभी गधे के साथ कदम मिलाये रखना कठिन हो जाता है, (प्रगतिशीलता में वह मुझसे चार कदम आगे रहता है) लेकिन मुझे गधे के पीछे चलने में उतना ही आनन्द आता है जितना कि पलायनवादी को जीवन से भागने में।" पढ़िए निबंधकार व आलोचक बाबू गुलाबराय के जीवन के एक दिन का विवरण!
Lazy, Bed, Sleep

आलस्य-भक्त

"मनुष्य-शरीर आलस्य के लिए ही बना है। यदि ऐसा न होता, तो मानव-शिशु भी जन्म से मृग-शावक की भांति छलांगें मारने लगता, किंतु प्रकृति की शिक्षा को कौन मानता है। मनुष्य ही को ईश्वर ने पूर्ण आराम के लिए बनाया है। उसी की पीठ खाट के उपयुक्त चौड़ी बनाई है, जो ठीक उसी से मिल जावे। मनुष्य चाहे पेट की सीमा से भी अधिक भोजन कर ले, उसके आराम के अर्थ पीठ मौजूद है। ईश्वर ने तो हमारे आराम की पहले ही से व्यवस्था कर दी है। हम ही उसका पूर्ण उपयोग नहीं कर रहे हैं।"
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