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साँवली मालकिन
एक औरत एक ज़मींदार के यहाँ बंधुआ मजदूर के रूप में क़ैद है और उसकी बेटी दो-तीन साल के बाद उससे मिलने जाती है.. और जब मिलकर लौटती है तो जो वह कहती है, वह उसके पिता को हैरत में डाल देता है! यह कहानी इसका प्रतीक है कि कैसे ज़मींदारी व्यवस्था ने पैसे के आगे परिवारों और रिश्तों को सदियों कुचला है..
पढ़िए, आज शायद आप इस से बेहतर कुछ नहीं पढ़ पाएंगे! :)