Tag: Bangla Poetry

himshila - a poem by viplav majhi

हिमशिला

मैं चाहता हूँ इस धरती को तुम थोड़ा-थोड़ा कर ही सही समझना तो शुरू करो। तुम खुद अपनी आँखों से देखो किस तरह खण्डहर में तब्दील हो गये हैं इतिहास...
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