Tag: Bharat Bhushan

Open Heart, Untouched

ये असंगति ज़िन्दगी के द्वार सौ-सौ बार रोयी

ये असंगति ज़िन्दगी के द्वार सौ-सौ बार रोयी बाँह में है और कोई, चाह में है और कोई साँप के आलिंगनों में मौन चन्दन तन पड़े हैं सेज...

कविता कैसी होती है

यहां निराला विक्षिप्त हो जाते हैं मुक्तिबोध कंगाली में मर जाते हैं जॉन एलिया खून थूकते हैं गोरख पांडे आत्महत्या कर लेते हैं सर्दी की इक रात में मजाज़...

ज़ीस्त ये कैसी जंजाल में है

ज़ीस्त ये कैसी जंजाल में है चलना इसे हर हाल में है माज़ी के पीछे चलने वाले हाल तेरा किस हाल में है जवाब छोड़ तो आये हो...

टूटी है कस्ती पर किनारे तक आई है

टूटी है कस्ती पर किनारे तक आई है तुझसे जुदा उसने अपनी क़सम निभाई है सब की ज़बान पे नारे हैं, कैसा माहौल है दरख़्तों ने फूल...
Farmers

व्यस्तता

साहेब से मिलने किसान आया है साथ में रेहु मच्छली भी लाया है साहेब व्यस्त हैं कुछ लिखने-पढ़ने में बीच-बीच में चाह की घूंट भी ले लेते...

ख़ामोश सदा

फटे कंबल तले चलते रास्ते किनारे क्या तू भी कोई ख़्वाब बुनता है? क्या तेरी सदा उस तक नहीं पहुंचती? सुना है उपवास करने वालों की वो बहुत सुनता है...

सवाल

देर रात गुज़रते हुए कुत्तों की खोजी आँखों में उभर आये सवाल को देखकर अहसास होता है इस आबाद लेकिन वीरान शहर में कोई तो है जिसकी आँखों में एक...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)