Tag: Bhawani Prasad Mishra

Bhawani Prasad Mishra

तोड़ने से कुछ बड़ा है

बनाना तोड़ने से कुछ बड़ा है हमारे मन को हम ऐसा सिखाएँ गढ़न के रूप की झाँकी सरस है वही झाँकी जगत को हम दिखाएँ बखेरें बीज ज़्यादा...
Bhawani Prasad Mishra

मेरा अपनापन

रातों दिन बरसों तक मैंने उसे भटकाया लौटा वह बार-बार पार करके मेहराबें समय की मगर ख़ाली हाथ क्योंकि मैं उसे किसी लालच में दौड़ाता था दौड़ता था वह मेरे इशारे पर और जैसा...
Bhawani Prasad Mishra

वस्तुतः

मैं जो हूँ मुझे वही रहना चाहिए। यानी वन का वृक्ष खेत की मेंड़ नदी की लहर दूर का गीत व्यतीत वर्तमान में उपस्थित भविष्य में मैं जो हूँ मुझे वही रहना चाहिए तेज़ गर्मी मूसलाधार वर्षा कड़ाके की...
Old man from village

जाहिल के बाने

मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान...
Bhawani Prasad Mishra

साहित्य

एक दिन चुपचाप, अपने आप यानी बिन बुलाए, तुम चले आए; मुझे ऐसा लगा जैसे जगा था रात भर इसकी प्रतीक्षा में; कि दोनों हाथ फैलाकर तुम्हें उल्लास से खींचा; सबेरे की किरन...
Bhawani Prasad Mishra

लाओ अपना हाथ

लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो नये क्षितिजों तक चलेंगे हाथ में हाथ डालकर सूरज से मिलेंगे। इसके पहले भी चला हूँ लेकर हाथ में हाथ मगर वे हाथ किरनों के...
Bhawani Prasad Mishra

बूँद टपकी एक नभ से

बूँद टपकी एक नभ से किसी ने झुककर झरोखे से कि जैसे हँस दिया हो हँस रही-सी आँख ने जैसे किसी को कस दिया हो ठगा-सा कोई किसी की आँख...
Bhawani Prasad Mishra

सुख का दुःख

ज़िन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है, इस बात का मुझे बड़ा दुःख नहीं है, क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ, बड़े सुख आ जाएँ घर में तो कोई ऐसा...
Bhawani Prasad Mishra

उसे क्या नाम दूँ

उसे क्या नाम दूँ जिसे मैंने अपनी बुद्धि के अँधेरे में देखा नहीं छुआ जिसने मेरे छूने का जवाब छूने से दिया और जिसने मेरी चुप्पी पर अपनी चुप्पी की...
Bhawani Prasad Mishra

गीत फ़रोश

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ। मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ। जी, माल देखिए दाम बताऊँगा, बेकाम नहीं है, काम बताऊँगा, कुछ गीत...
Bhawani Prasad Mishra

सतपुड़ा के जंगल

सतपुड़ा के घने जंगल। नींद मे डूबे हुए से ऊँघते अनमने जंगल। झाड़ ऊँचे और नीचे, चुप खड़े हैं आँख मीचे, घास चुप है, कास चुप है मूक शाल, पलाश...
Anupam Mishra

स्नेह भरी उँगली

"यहीं नौवीं में हिन्दी पढ़ाते समय जब किसी एक सहपाठी ने हमारे हिन्दी के शिक्षक को बताया कि मैं भवानी प्रसाद मिश्र का बेटा हूँ तो उन्होंने उसे 'झूठ बोलते हो' कह दिया था। बाद में उनने मुझसे भी लगभग उसी तेज आवाज में पिता का नाम पूछा था। घर का पता पूछा था, फिर किसी शाम वे घर भी आए। अपनी कविताएँ भी मन्ना को सुनाईं। मन्ना ने भी कुछ सुनाया था। उस टेंटवाले स्कूल में ऐसे कवि का बेटा? मन्ना की प्रसिद्धि हमें इन्हीं मापदण्डों, प्रसंगों से जानने मिली थीं।"
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