Tag: Bhawani Prasad Mishra
तोड़ने से कुछ बड़ा है
बनाना तोड़ने से कुछ बड़ा है
हमारे मन को हम ऐसा सिखाएँ
गढ़न के रूप की झाँकी सरस है
वही झाँकी जगत को हम दिखाएँ
बखेरें बीज ज़्यादा...
मेरा अपनापन
रातों दिन बरसों तक
मैंने उसे भटकाया
लौटा वह बार-बार
पार करके मेहराबें
समय की
मगर ख़ाली हाथ
क्योंकि मैं उसे
किसी लालच में दौड़ाता था
दौड़ता था वह मेरे इशारे पर
और जैसा...
वस्तुतः
मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए।
यानी
वन का वृक्ष
खेत की मेंड़
नदी की लहर
दूर का गीत
व्यतीत
वर्तमान में
उपस्थित भविष्य में
मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए
तेज़ गर्मी
मूसलाधार वर्षा
कड़ाके की...
जाहिल के बाने
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान...
साहित्य
एक दिन चुपचाप,
अपने आप
यानी बिन बुलाए,
तुम चले आए;
मुझे ऐसा लगा
जैसे जगा था रात भर
इसकी प्रतीक्षा में;
कि दोनों हाथ फैलाकर
तुम्हें उल्लास से खींचा;
सबेरे की किरन...
लाओ अपना हाथ
लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो
नये क्षितिजों तक चलेंगे
हाथ में हाथ डालकर
सूरज से मिलेंगे।
इसके पहले भी
चला हूँ लेकर हाथ में हाथ
मगर वे हाथ
किरनों के...
बूँद टपकी एक नभ से
बूँद टपकी एक नभ से
किसी ने झुककर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो
हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो
ठगा-सा कोई किसी की
आँख...
सुख का दुःख
ज़िन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दुःख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएँ घर में
तो कोई ऐसा...
उसे क्या नाम दूँ
उसे क्या नाम दूँ जिसे मैंने
अपनी बुद्धि के अँधेरे में देखा नहीं
छुआ
जिसने मेरे छूने का जवाब
छूने से दिया
और जिसने मेरी चुप्पी पर
अपनी चुप्पी की...
गीत फ़रोश
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।
मैं तरह-तरह के
गीत बेचता हूँ
मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत
बेचता हूँ।
जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊँगा,
कुछ गीत...
सतपुड़ा के जंगल
सतपुड़ा के घने जंगल।
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
झाड़ ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश...
स्नेह भरी उँगली
"यहीं नौवीं में हिन्दी पढ़ाते समय जब किसी एक सहपाठी ने हमारे हिन्दी के शिक्षक को बताया कि मैं भवानी प्रसाद मिश्र का बेटा हूँ तो उन्होंने उसे 'झूठ बोलते हो' कह दिया था। बाद में उनने मुझसे भी लगभग उसी तेज आवाज में पिता का नाम पूछा था। घर का पता पूछा था, फिर किसी शाम वे घर भी आए। अपनी कविताएँ भी मन्ना को सुनाईं। मन्ना ने भी कुछ सुनाया था। उस टेंटवाले स्कूल में ऐसे कवि का बेटा? मन्ना की प्रसिद्धि हमें इन्हीं मापदण्डों, प्रसंगों से जानने मिली थीं।"