Tag: Bhupendra Singh Khidia
मिनट का दान
घर के एक कमरे में बैठी
बुज़ुर्ग औरत से मैं बात नहीं कर पाता,
कभी-कभार पास जाकर बैठ जाता हूँ
हँसी-ठिठोली भी कर लेता हूँ
लेकिन!
इसे भी बात करना...
जय जयकार
पर्वत हो भुजदण्ड सभी के, आँखें हो अंगार
जय जयकार जय जयकार, हो मानव की जय जयकार,
ऐसी ऊर्जा हो तन में जो लुप्त नहीं हो पाए
जीवन भर...
क्या सभी मर जाएँगे?
ये जो मधुमक्खी के छत्ते रस से पूरे हैं भरे
ये जो फल पकने लगे हैं और कुछ जो हैं हरे,
बाग़ों में खिलकर उठे हैं...
ओ कजरारी अँखियों वाली
नर के शोणित को अग्नि का पान कराने वाली
तन की वीणा को झंकृत कर गान सुनाने वाली,
स्वप्न चिरइया के पंखों की व्याकुल तीव्र गति...