Tag: Bhuvaneshwar

Bhuvaneshwar

पतित (शैतान)

"जैसे माता अपने उनींदे बालक को हौआ कह कर डराती है, वैसे ही संसार ने मुझे आत्मा और परमात्मा के हौआ से डराना चाहा।" "मैं यदि सृष्टि बनाता, तो उसे इतनी अपूर्ण न बनाता।" "तुम उसे प्रेम करती हो, क्योंकि वह तुम्हारे जीवन का एक आवश्यक अंग है और मुझसे घृणा करती हो, क्योंकि मेरी आवश्यकता तुमको नहीं है।"
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एक रात

"उसने एक पुरुष से प्रेम किया, दूसरे से विवाह किया, एक का हृदय तोड़ दिया और उसका फोटो चूमा, दूसरे से अधिक-अत्यधिक निकट आकर विकृत कर दिया..."
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जीवन की झलक

मेरी उम्र के 65 वर्ष 6 महीने 2 दिन बीत चुके हैं, आज तीसरा दिन है। सिर में धीमा-धीमा दर्द हो रहा है। युवावस्था में मैंने काशी के एक ज्योतिषी को अपना हाथ दिखाया था। उसने कहा था - "तुम्हारी उम्र 65 वर्ष 6 महीने 3 दिन की है।"
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डाकमुंशी

"लड़कों के गुल-गपाड़े, स्त्रियों के गाली-गलौज, प्रेमियों के दिनदहाड़े चुम्बनों में डाकमुंशी एक साफ कागज पर चीना का नाम लिख अपना टूटा-फूटा कलमदान लेकर पंचायत करने बैठता था।"
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भविष्य के गर्भ में

"चार्ल्स को अब लुइजा की स्थिति का पता चला। वह सन्न रह गया। हृदय के आवेश में वह सोच रहा था यदि लुइजा आकाश के तारे माँगेगी तो वह आसमान में छेद कर उसको लाने की चेष्टा करेगा; यदि वह अपने पिता की समाधि पर बड़ी इमारत बनाना चाहेगी तो मैं बात की बात में गगनचुम्बी अट्टालिका बनवा दूँगा। परन्तु सर्प ने अपनी ही मणि की भिक्षा की कल्पना भी नहीं की थी। जीव ने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई उसी से उसके प्राणों की भीख चाहेगा।"
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मास्टरनी

उस रोज सुबह से पानी बरस रहा था। साँझ तक वह पहाड़ी बस्ती एक अपार और पीले धुँधलके में डूब-सी गयी थी। छिपे हुए सुनसान...
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लड़ाई

"जगा। डिब्बे में तीखी गरम रोशनी थी, खद्दरपोश उतर चुका था, महिला और उसके पति सो रहे थे, स्टूडेंट वैसे ही धुएँ के लच्छे बना रहा था। लड़का सोल्जर के बिस्तरे पर बैठा था, उसने जले हुए सिगरेट जमा किए थे। वह उन्हें गिन रहा था। एक, दो, तीन... पाँच।"
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ताँबे के कीड़े

"बादलों ने सूरज की हत्या कर दी, सूरज मर गया। मैं दूसरे का बोझ ढोता हूँ। मेरे रिक्शे में आईने लगे हैं। आईने में मैं अपना मुँह देखता हूँ। सूरज नहीं रहा। अब धरती पर आईनों का शासन होगा। आईने अब उगने और न उगने वाले बीज अलग-अलग कर देंगे।" न कोई कथा, न मंच विधान, केवल एक काला परदा और एक झुनझुना लिए हुए अनाउंसर स्त्री! अजीब सा रुका-रुका सा नाटक, किन्तु समझ लिया जाए तो अर्थ और प्रभाव से कोई अछूता नहीं रह सकता। यह नाटक आदमी को मशीन न बनने देने के लिए संघर्ष करता है और यह बताता है कि भय और मृत्यु का प्रतिरोध करने का सबसे सशक्त ढंग है- जीवन को जीने लायक बनाना! ज़रूर पढ़िए!
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सूर्यपूजा

"थोड़े-से क्लर्क, दुकानदार, दलाल, अ़फसर - और हर एक शहर में बिलकुल ऐसे ही क्लर्क, दुकानदार, दलाल और अफसर हैं, बिलकुल ऐसे ही! यह इतनी डुप्लीकेट कॉपियाँ आखिर क्यों हैं! जब खुद असल ही इतना जलील है। कोई यह यकीन करेगा कि यह एक शहर है जहाँ आदमी रहते हैं - जिन्दा, पूरे-पूरे मनुष्य, जो ह्यूमेनिटी कही जाती है?"
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हाय रे, मानव हृदय!

"समाज मेरा आदर करता है कि मैंने नि:संकोच उसके बन्धनों और तुच्छताओं के सम्मुख सिर झुकाया है।"
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रुथ के लिए

अनुवाद: शमशेर बहादुर सिंह मगन मन पंख झड़ जाते यदि और देखनेवाली आँखें झप जाती हैं शाहीन के अंदर पानी नहीं रहता उस अमृत जल को पी के...
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यदि ऐसा हो तो

एक प्यारी-सी लड़की अकेले प्रकाश में उसका चेहरा ही प्यार बोलता था, मैंने उसका आलिंगन किया मैंने उसके होंठों को चूमा आह, कितना सुखद-सुख... नेता, योद्धा, राजे-महाराजे इस धरती के...
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