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सुनो स्त्री
सुनो, स्त्री!
सिखा दो अपने पैरों को
ज़मीन पर चलना क्योंकि
समाज जानता है
स्त्रियों के पर कतरना
तुम्हें आभास भी होता है कभी
किन-किन ज़ंजीरों में
जकड़ी हुई हो तुम?
घर...
रंगबिरंगी परछाइयाँ
जैसे रात और दिन के बीच चाँद
चिपका रहता है आसमान से,
वैसे ही आजकल
बड़ी, गोल बिंदी भाती है मुझे
मेरे दोनों भवों के बीचोंबीच...
उस चाँद के हिस्से...