Tag: देह

Woman, Abstract

देह

एक देह को चलते या जागते देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं जो गंध और स्पर्श का घर होते हुए भी उसके पार का माध्यम...
Nails on Body

रिश्तों की रेत

तुमने कब चाहा रिश्तों की तह तक जाना देह तक ही सीमित रहा तुम्हारा मन देह को नापती तुम्हारी आँखों ने देखना चाहा ही नहीं मन के घुमड़ते ज्वार देह को...
Rahul Boyal

ज़ख़्मी गाल

'Zakhmi Gaal', a poem by Rahul Boyal जब मैं उससे मिला उसकी आँखें भर आयीं मुझे ख़बर ही न पड़ी कब मेरा सीना ख़ाली हो गया मैंने बस उसे...
Meeraji

जिस्म के उस पार

अंधेरे कमरे में बैठा हूँ कि भूली-भटकी कोई किरन आ के देख पाए मगर सदा से अंधेरे कमरे की रस्म है कोई भी किरन आ के...
Octavio Paz

दो जिस्म

'Two Bodies', a poem by Octavio Paz अनुवाद: पुनीत कुसुम दो जिस्म रूबरू कभी-कभी हैं दो लहरें और रात है महासागर दो जिस्म रूबरू कभी-कभी हैं दो पत्थर और रात रेगिस्तान...
Woman, Bed, Night, Lights

तुम्हारी हथेली का चाँद

इस घुप्प घने अँधेरे में जब मेरी देह से एक-एक सितारा निकलकर लुप्त हो रहा होता है आसमान में तुम्हारी हथेली का चाँद, चुपके-से चुनता है, वो एक-एक सितारा...
Nails on Body

अगर तस्वीर बदल जाए

सुनो, अगर मैं बन जाऊँ तुम्हारी तरह प्रेम लुटाने की मशीन मैं करने लगूँ तुमसे तुम्हारे ही जैसा प्यार तुम्हारी तरह का स्पर्श जो आते-जाते मेरे गालों पे...
Hand Covering Face, Sexual Abuse, Body

दो जिस्म

दो जिस्म रहते हैं इस घर में जो दिन के उजालो में दूर रात के अंधेरो में लफ़्ज़ खोलते हैं एक वो है जो सुबह की उस पहली चाय से रात के...
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