Tag: Book review
आधे-अधूरे : एक सम्पूर्ण नाटक
आधे-अधूरे: एक सम्पूर्ण नाटक
समीक्षा: अनूप कुमार
मोहन राकेश (1925-1972) ने तीन नाटकों की रचना की है— 'आषाढ़ का एक दिन' (1958), 'लहरों के राजहंस' (1963)...
समीक्षा: ‘एक बटा दो’
किताब: 'एक बटा दो'
लेखिका: सुजाता
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
समीक्षा/टिप्पणी: महेश कुमार
स्त्री निर्मिति की विभिन्न चरणों की पड़ताल करके उससे बाहर निकलने का स्त्रीवादी विश्लेषण है 'एक...
क़िस्सागोई का कौतुक देती कहानियाँ
समीक्ष्य कृति: दलदल (कहानी संग्रह) (अंतिका प्रकाशन, ग़ाज़ियाबाद)
टिप्पणी: सुषमा मुनीन्द्र
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सुपरिचित रचनाकार सुशांत सुप्रिय का सद्यः प्रकाशित कथा संग्रह ‘दलदल’ ऐसे समय में आया है...
प्रमोद रंजन की किताब ‘शिमला डायरी’ [समीक्षा: देविना अक्षयवर]
जिसे आज 'पहाड़ों की रानी' कहा जाता है, वह कभी उत्तरी भारत के इस हिमालयी राज्य का एक छोटा-सा गाँव हुआ करता था। अँग्रेज़ों...
पंखुरी सिन्हा की किताब ‘प्रत्यंचा’
'कविता एक निर्णय है'
किताब समीक्षा: पूनम सिन्हा
किताब: 'प्रत्यंचा' (कविता संग्रह)
कवयित्री: पंखुरी सिन्हा
प्रकाशन: बोधि प्रकाशन
"कविता न होगी साहस न होगा
एक और ही युग होगा जिसमें...
सियाह औ सुफ़ैद से कहीं अधिक है यह ‘सियाहत’
किताब समीक्षा: डॉ. श्रीश पाठक - आलोक रंजन की किताब 'सियाहत'
आज की दुनिया, आज का समाज उतने में ही उठक-बैठक कर रहा जितनी मोहलत उसे...
उम्मीदों का अफ़साना – ‘बाहिर’
उम्मीदों का अफ़साना - 'बाहिर'
(समीक्षा: प्रदुम्न आर. चौरे)
"आते हैं राहों में मसाइब कई,
यूँ ही नहीं होता करिश्मा कोई।"
यह शेर मैंने पॉल ए कॉफ़मेन द्वारा...
‘पांच एब्सर्ड उपन्यास’ – नरेन्द्र कोहली
'पांच एब्सर्ड उपन्यास' - नरेन्द्र कोहली
नरेन्द्र कोहली की किताब 'पाँच एब्सर्ड उपन्यास' पर आदित्य भूषण मिश्रा की टिप्पणी!
मैंने जब किताब के ऊपर यह नाम...
नरेन्द्र कोहली की ‘क्षमा करना जीजी’
'क्षमा करना जीजी' - नरेन्द्र कोहली
आज सुबह "क्षमा करना जीजी" पढ़ना शुरू किया. यह नरेन्द्र कोहली लिखित सामाजिक उपन्यास है. यह अपने आप में...
‘पाकिस्तान का मतलब क्या’ – एक टिप्पणी
'पाकिस्तान का मतलब क्या' - एक टिप्पणी
असग़र वजाहत की किताब 'पाकिस्तान का मतलब क्या' पर आदित्य भूषण मिश्रा की एक टिप्पणी
मैं अभी पिछले दिनों,...
‘आधे-अधूरे’: अपूर्ण महत्त्वाकांक्षाओं की कलह
'मोहन राकेश का नाटक आधे अधूरे' - यहाँ पढ़ें
मोहन राकेश का नाटक 'आधे-अधूरे' एक मध्यमवर्गीय परिवार की आंतरिक कलह और उलझते रिश्तों के साथ-साथ...
‘हीरा फेरी’ – सुरेन्द्र मोहन पाठक का इकसठ माल
जितना बड़ा नाम सुरेन्द्र मोहन पाठक हिन्दी के अपराध लेखन या पोपुलर साहित्य में रखते हैं, उस हिसाब से आज भी मुझे लगता है...