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गौरव भारती की कविताएँ – IV
Poetry by Gaurav Bharti
क़ैद रूहें
उनका क्या
जो नहीं लौटते हैं घर
कभी-कभार
देह तो लौट भी जाती है
मगर रूहें खटती रहती हैं
मीलों में
खदानों में
बड़े-बड़े निर्माणाधीन मकानों में
इस उम्मीद...
टूट-फूट
'Toot-Phoot', Hindi Kavita by Rakhi Singh
आज फिर एक और गमला टूट गया...
घर बदलने के बाद से
बन्द हो गया है चिड़ियों का आना
हालाँकि उनके लिए...