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माँ होना ज़रूरी नहीं
"हज़ारों साल से हमने एक मनोवैज्ञानिक बीमारी का ग़िलाफ़ ओढ़ रखा है और वो बीमारी ये है कि जब कभी हमारी क़रीबी औरतों को जिन्होंने हमें जन्म दिया है, उनकी जिस्मानी ज़रूरतों का ज़िक्र होगा तो हमारे मुँह लाल हो जाया करेंगे, कनपटियां सुर्ख़ और माथे पसीनों से तर होंगे।"