Tag: Chitra Mudgal
जंगल
रीडर अणिमा जोशी के मोबाइल पर फ़ोन था मांडवी दीदी की बहू तविषा का।
आवाज़ उसकी घबरायी हुई-सी थी। कह रही थी, "आंटी, बहुत ज़रूरी काम...
तर्पण
"यह क्या किया आपने पापाजी? बैठक में मम्मीजी की तसवीर टाँग दी? मम्मीजी की तसवीर कोई सैयद हैदर रजा की पेंटिंग है क्या? कितनी भद्दी लग रही है दीवार! सोचा था, साठ-सत्तर हजार जोड़ लूँगी तो रजा की एक पेंटिंग खरीद कर लाकर यहाँ टाँग दूँगी। न होगा तो उनकी किसी पेंटिंग का पोस्टर ही खरीद कर मढ़वा लूँगी। लग जाएँगे चार-चाँद बैठक की कलात्मकता में। ईर्ष्या करेंगे अड़ोसी-पड़ोसी। उनके घर की दीवार पर रजा की पेंटिंग सजी हुई है।"
नतीजा
"बेवकूफ बच्चियाँ नहीं जानतीं कि उनका फेल होना मात्र उनका फेल होना भर नहीं है, उनका फेल होना... उनके मोरचे का ढहना है... वे स्वयं को कहीं रोप नहीं पाएँगी तो अँकुआएँगी कैसे...?"
किसी इंसान को एक बुरे परिवेश या बुरी जगह से निकालकर उसके जीवन को सामान्यधारा में लाने की कोशिश करने के कदम तो उठ जाते हैं, लेकिन यदि उस इंसान में ही इच्छाशक्ति न हो तो वे कदम लड़खड़ा भी जल्दी ही जाते हैं.. समाज के लिए कार्य करने वालों में कितने धैर्य और आत्मबल की ज़रूरत होती है, यह कहानी बखूबी बताती है.. ज़रूर पढ़िए!