Tag: Dalit Sahitya

J V Pawar

‘दलित पैंथर ने दलित साहित्य का भूमण्डलीकरण किया’

दलित पैंथर के संस्थापक ज. वि. पवार से राजश्री सैकिया की बातचीत ज. वि. पवार दलित-पैंथर के संस्थापकों में एक रहे हैं। इस संगठन ने...
Rajni Tilak

औरत-औरत में अन्तर है

औरत, औरत होती है, उसका न कोई धर्म न कोई जात होती है, वह सुबह से शाम खटती है, घर में मर्द से पिटती है सड़क पर शोहदों से छिड़ती...
Malkhan Singh

आज़ादी

वहाँ वे तीनों मिले धर्मराज ने कहा, पहले से— दूर हटो तुम्हारी देह से बू आती है सड़े मैले की। उसने उठाया झाड़ू मुँह पर दे मारा। वहाँ वे तीनों मिले धर्मराज...
Baburao Bagul

जब मैंने जाति छुपाई

"महार होने से क्या हुआ? दीवार के सामने पड़ी टट्टी-पेशाब की गन्दगी साफ़ नहीं करूँगा।" "तुम्हें करनी होगी और बराबर साफ़ करनी होगी।"
Om Prakash Valmiki

पच्चीस चौका डेढ़ सौ

"सुदीप जब भी किसी को गिड़गिड़ाते देखता है तो उसे अपने पिताजी की छवि याद आने लगती है!"
Neerav Patel

माँ! मैं भला कि मेरा भाई?

अनुवादः साहिल परमार तथा फूलचंद गुप्ता तुम्हारी चमर कौं-कौं से मैं तंग आ गई तुमने तो राग बिना ही नौटंकी कर रखी है तुम्हारे बाबा क्या गए तुमने...
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