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‘दलित पैंथर ने दलित साहित्य का भूमण्डलीकरण किया’
दलित पैंथर के संस्थापक ज. वि. पवार से राजश्री सैकिया की बातचीत
ज. वि. पवार दलित-पैंथर के संस्थापकों में एक रहे हैं। इस संगठन ने...
औरत-औरत में अन्तर है
औरत, औरत होती है,
उसका न कोई धर्म
न कोई जात होती है,
वह सुबह से शाम खटती है,
घर में मर्द से पिटती है
सड़क पर शोहदों से छिड़ती...
आज़ादी
वहाँ वे तीनों मिले
धर्मराज ने कहा, पहले से—
दूर हटो
तुम्हारी देह से बू आती है
सड़े मैले की।
उसने उठाया झाड़ू
मुँह पर दे मारा।
वहाँ वे तीनों मिले
धर्मराज...
जब मैंने जाति छुपाई
"महार होने से क्या हुआ? दीवार के सामने पड़ी टट्टी-पेशाब की गन्दगी साफ़ नहीं करूँगा।"
"तुम्हें करनी होगी और बराबर साफ़ करनी होगी।"
पच्चीस चौका डेढ़ सौ
"सुदीप जब भी किसी को गिड़गिड़ाते देखता है तो उसे अपने पिताजी की छवि याद आने लगती है!"
माँ! मैं भला कि मेरा भाई?
अनुवादः साहिल परमार तथा फूलचंद गुप्ता
तुम्हारी चमर कौं-कौं से मैं तंग आ गई
तुमने तो राग बिना ही नौटंकी कर रखी है
तुम्हारे बाबा क्या गए
तुमने...