Tag: Deepak Singh Chauhan
उपलब्धि
'Uplabdhi', a poem by Deepak Singh Chauhan
बाढ़ के पानी में
डूबकर मर रहे
मासूम, अपाहिज, वृद्ध,
जल समाधि ले रहे
निरीह जानवर, मवेशी,
रोका नहीं जाएगा
इस बाढ़ को
बाँध बनाकर,
कोई...
परिपक्व प्रेम
समय के साथ
परिपक्व हो जाता है
प्रेम,
यह स्थापित करता है
आसमान में
अपना एक अलग चाँद
जो घटता-बढ़ता नहीं
दिन के हिसाब से
यह समुद्र तट
की लहरों की तरह
नहीं होता...
ज़रूरी सवाल
कुछ सवाल हमें ज़रूर पूछ लेने चाहिए
ख़ुद से, वो सवाल जो हमें डराते हैं
जो हम कभी पूछना ही नहीं चाहते
ख़ुद से, डर होता है हमें...
फ़िक्र
अक्सर कहा जाता है मुझे
फ़िक्र नहीं किसी चीज की
पर लगता है मुझे
करनी ही नहीं आती फ़िक्र
जबकि मैं पढ़ता हूँ
भूख से मरते हुए बच्चों की...
नई दुनिया
मैं चाहता हूँ
एक अलग दुनिया
जिसमें बदल दी जाएँ कुछ
पुरानी परम्पराएँ
परिभाषाएँ
हालाँकि हो सकता है
यह सिर्फ एक भ्रम
मैं चाहता हूँ कि
सिद्धार्थ नहीं बल्कि
यशोधरा करें गृहत्याग
खोजें खुद का अस्तित्व
और...
घर लौटते मज़दूर
बड़े शहर से गांव लौटते मज़दूर
कभी पूरा नहीं लौटते
शहर में छोड़ कर आते हैं वो
पुराने बरतन, फटी चटाई, स्टोव
इसके साथ ही छूटे रह जाते...
भूख
कोई बड़ी बात नहीं, महसूस करना
किसी भूखे इंसान का दर्द
जब भूख से जल रही हों
अंतड़ियाँ खुद की
बल्कि
भरपेट भोजन मिलने पर भी
अगर महसूस करते हो
किसी...
राख
खुद को एक दूसरे के ऊपर
प्रतिस्थापित करने के उद्योग में
उन्मादी भीड़-समूह ने
फेंके एक-दूसरे के ऊपर अनगिनत पत्थर
जमकर बरसाई गईं गोलियां
पार की गईं हैवानियत की...
दुनिया में हर चीज की कीमत होती है
मुर्दों की भी एक वसीयत होती है
दुनिया में हर चीज की कीमत होती है।
इंसान तो क्या भगवान खरीदे जाते हैं
तभी तो सबसे ऊपर दौलत...
प्रेम-कविता
मैं लिख लेता हूं प्रेम कविताएं
क्योंकि अभी नहीं है मेरे ऊपर कोई जिम्मेदारी
अभी मिल जाती है फुरसत
तुम्हें याद करने की
और इन्हीं कविताओं में
कई कई...