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दिल्ली की बसों में
सौर से निकलते ही
पायदान पर खड़ा हो गया,
दिल्ली की इन बसों में
मैं बूढ़ा हो गया।
जो मुल्क को खचड़े की तरह
दौड़ा रहे हैं,
उनके पाँव का...
कविताएँ: जून 2020
मुक्तावस्था
मंडी हाउस के एक सभागार में
बुद्धिजीवियों के बीच बैठी एक लड़की
नाटक के किसी दृश्य पर
ठहाके मार के हँस पड़ती है
सामने बैठे सभी लोग
मुड़कर देखते...
परीक्षा
"आँखों से आँसू जारी थे, दिलों से आहें निकल रही थीं पर रत्न-जटित आभूषण पहने जा रहे थे, अश्रु-सिंचित नेत्रों में सुरमा लगाया जा रहा था और शोक-व्यथित हृदयों पर सुगंध का लेप किया जा रहा था।"
संग-ए-मील
10 सितंबर 2017, रविवार के दिन जब आधी दिल्ली, शाम के मनोरंजन के प्लान बना रही थी, तब दिल्ली का एक कोना सुबह से...