Tag: Dharmvir Bharati
धर्मवीर भारती – ‘गुनाहों का देवता’
धर्मवीर भारती के उपन्यास 'गुनाहों का देवता' से उद्धरण | Quotes from 'Gunahon Ka Devta', a novel by Dharmvir Bharti
"सचमुच लगता है कि प्रयाग...
क्या इनका कोई अर्थ नहीं
ये शामें, सब की सब शामें
जिनमें मैंने घबराकर तुमको याद किया
जिनमें प्यासी सीपी-सा भटका विकल हिया
जाने किस आने वाले की प्रत्याशा में
ये शामें
क्या इनका...
कविता की मौत
लादकर ये आज किसका शव चले?
और इस छतनार बरगद के तले
किस अभागन का जनाज़ा है रुका?
बैठ इसके पाँयते, गर्दन झुका,
कौन कहता है कि कविता...
उदास तुम
तुम कितनी सुन्दर लगती हो
जब तुम हो जाती हो उदास!
ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खण्डहर के आसपास
मदभरी चाँदनी जगती हो!
मुँह पर ढँक लेती हो...
मुरदों का गाँव
'Murdon Ka Gaon', a story by Dharamveer Bharti
उस गाँव के बारे में अजीब अफवाहें फैली थीं। लोग कहते थे कि वहाँ दिन में भी...
साँझ के बादल
ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आती
मंथर चाल।
नीलम पर किरनों
की साँझी
एक न डोरी
एक न माँझी,
फिर भी लाद निरन्तर लाती
सेंदुर और प्रवाल!
कुछ समीप की
कुछ सुदूर...
गुनाह का गीत
अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे
महज़ इससे किसी का प्यार मुझको पाप कैसे हो?
महज़ इससे किसी...
गुलकी बन्नो
कहते हैं वास्तविक जीवन गली-मोहल्लों में देखने को मिलता है, इसका एक कारण यह है कि यही हमारे आधुनिक परिवेश का इतिहास रहा है, हम वहीं से उठ कर आए हैं.. और दूसरा यह कि इन्हीं जगहों पर मानवीय संवेदना अपने मूल और नग्न रूप में देखने को मिलती है.. ऐसा ही एक जीवन दिखाती, धर्मवीर भारती की इस कहानी का एक मुख्य पात्र इसका परिवेश, इसका वातावरण भी है, जो अन्य पात्रों के साथ इस कहानी के पाठकों पर पड़ने वाले प्रभाव में मुख्य भूमिका निभाता है.. गुलकी से झगड़ते, उसे परेशान करते, उस पर हँसते गली के बच्चे कैसे कहानी के अंत में अपनी 'छोटी-छोटी पसलियों में आँसू जमा' हुआ पाते हैं, पढ़ने लायक है...
ठेले पर हिमालय
लगा, यह हिमालय बड़े भाई की तरह ऊपर चढ़ गया है, और मुझे, छोटे भाई को- नीचे खड़ा हुआ, कुंठित और लज्जित देखकर थोड़ा उत्साहित भी कर रहा है, स्नेह भरी चुनौती भी दे रहा है - "हिम्मत है? ऊँचे उठोगे?"