Tag: Dhoomil
सच्ची बात
बाड़ियाँ फटे हुए बाँसों पर फहरा रही हैं
और इतिहास के पन्नों पर
धर्म के लिए मरे हुए लोगों के नाम
बात सिर्फ़ इतनी है
स्नानाघाट पर जाता...
शान्ति-पाठ
अख़बारों की सुर्ख़ियाँ मिटाकर दुनिया के नक़्शे पर
अन्धकार की एक नयी रेखा खींच रहा हूँ,
मैं अपने भविष्य के पठार पर आत्महीनता का दलदल
उलीच रहा हूँ।
मेरा...
पटकथा
जब मैं बाहर आया
मेरे हाथों में
एक कविता थी और दिमाग़ में
आँतों का एक्स-रे।
वह काला धब्बा
कल तक एक शब्द था;
ख़ून के अँधेर में
दवा का ट्रेडमार्क
बन गया...
हर तरफ़ धुआँ है
हर तरफ़ धुआँ है
हर तरफ़ कुहासा है
जो दाँतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है
अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है—
तटस्थता।
यहाँ कायरता के चेहरे पर
सबसे ज़्यादा रक्त है।
जिसके...
बीस साल बाद
बीस साल बाद
मेरे चेहरे में वे आँखें लौट आयी हैं
जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है:
हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड़...
कविता के भ्रम में
क्या तुम कविता की तरफ़ जा रहे हो?
नहीं, मैं दीवार की तरफ़
जा रहा हूँ।
फिर तुमने अपने घुटने और अपनी हथेलियाँ
यहाँ क्यों छोड़ दी हैं?
क्या...
वसन्त
इधर मैं कई दिनों से प्रतीक्षा
कर रहा हूँ : कुर्सी में
टिमटिमाते हुए आदमी की आँखों में
ऊब है और पड़ोसी के लिए
लम्बी यातना के बाद
किसी तीखे शब्द...
उस औरत की बग़ल में लेटकर
'Us Aurat Ki Bagal Mein Letkar', a poem by Dhoomil
मैंने पहली बार महसूस किया है
कि नंगापन
अन्धा होने के ख़िलाफ़
एक सख़्त कार्यवाही है
उस औरत की बग़ल...
जनतन्त्र के सूर्योदय में
रक्तपात—
कहीं नहीं होगा
सिर्फ़, एक पत्ती टूटेगी!
एक कन्धा झुक जाएगा!
फड़कती भुजाओं और सिसकती हुई आँखों को
एक साथ लाल फीतों में लपेटकर
वे रख देंगे
काले दराज़ों के...
कुछ सूचनाएँ
'Kuchh Soochnaaein', a poem by Sudama Pandey Dhoomil
सबसे अधिक हत्याएँ
समन्वयवादियों ने कीं।
दार्शनिकों ने
सबसे अधिक ज़ेवर खरीदा।
भीड़ ने कल बहुत पीटा
उस आदमी को
जिस का मुख ईसा...
सार्वजनिक ज़िन्दगी
मैं होटल के तौलिये की तरह
सार्वजनिक हो गया हूँ
क्या ख़ूब, खाओ और पोंछो,
ज़रा सोचो,
यह भी क्या ज़िन्दगी है
जो हमेशा दूसरों के जूठ से गीली रहती...
रोटी और संसद
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता...