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Muktibodh

तुम्हारा पत्र आया

तुम्हारा पत्र आया, या अँधेरे द्वार में से झाँककर कोई झलक अपनी, ललक अपनी कृपामय भाव-द्युति अपनी सहज दिखला गया मानो हितैषी एक! हमारे अन्धकाराच्छन्न जीवन में विचरता है मनोहर सौम्य...
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