Tag: Dinkar

Dinkar

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न...
Dinkar

सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है

सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है, दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती...
Dinkar

अवकाश वाली सभ्यता

मैं रात के अँधेरे में सितारों की ओर देखता हूँ जिनकी रोशनी भविष्य की ओर जाती है अनागत से मुझे यह ख़बर आती है कि चाहे लाख बदल...
Dinkar - D H Lawrence, Aatma Ki Aankhein

ईश्वर की देह

किताब 'आत्मा की आँखें' से कविता: डी एच लॉरेंस अनुवाद: रामधारी सिंह दिनकर ईश्वर वह प्रेरणा है, जिसे अब तक शरीर नहीं मिला है। टहनी के भीतर अकुलाता हुआ फूल, जो...
Ramdhari Singh Dinkar

भगवान के डाकिए

पक्षी और बादल, ये भगवान के डाकिए हैं जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं— हम तो समझ नहीं पाते हैं मगर उनकी लायी चिट्ठियाँ पेड़, पौधे, पानी और...
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