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कुत्ते
ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
कि बख़्शा गया जिनको ज़ौक़-ए-गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इनका
जहाँ-भर की दुत्कार इनकी कमाई
न आराम शब को, न राहत सवेरे
ग़लाज़त...
रामस्वरूप किसान की कविताएँ
कविता संग्रह 'आ बैठ बात करां' से
चयन व अनुवाद: राजेन्द्र देथा
कितने भोले हैं वे
मैं उनके सामने औरों की तरह
हाथ बाँधकर नहीं जाता
न ही दाँत निकाल
पूँछ हिलाता
उनके समक्ष
उनके...