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डरावना स्वप्न
लम्बी कविता: डरावना स्वप्न
(एक)
हर रात वही डरावना सपना
लगभग तीन से चार बजे के बीच आता है
और रोम-रोम कँपा जाता है
बहुत घबराहट के साथ
पसीने-पसीने हुआ-सा...
जीवन सपना था, प्रेम का मौन
जीवन सपना था
आँखें सपनों में रहीं
और सपने झाँकते रहे आँखों की कोर से
यूँ रची हमने अपनी दुनिया
जैसे बचपन की याद की गईं कविताएँ
हमारा दुहराया...
अहमद नियाज़ रज़्ज़ाक़ी की नज़्में
अब
अब कहाँ है ज़बान की क़ीमत
हर नज़र पुर-फ़रेब लगती है
हर ज़ेहन शातिराना चाल चले
धड़कनें झूठ बोलने पे तुलीं
हाथ उठते हैं बेगुनाहों पर
पाँव अब रौंदते...
संजय छीपा की कविताएँ
1
कुरेदता हूँ
स्मृतियों की राख
कि लौट सकूँ कविता की तरफ़
एक नितान्त ख़ालीपन में
उलटता-पलटता हूँ शब्दों को
एक सही क्रम में जमाने की
करता हूँ कोशिश
ज़िन्दगी की बेतरतीबी...
स्वप्न-प्रसंग
तुमने कहा था एक बार
गहरे स्वप्न में मिलोगी तुम
कितने गहरे उतरूँ स्वप्न में
कि तुम मिलो?
एक बार मैं डूबा स्वप्न में इतना गहरा
कि फिर उभरा...
कवि के स्वप्नों का महत्त्व
कवि के स्वप्नों का महत्त्व!—विषय सम्भवतः थोड़ा गम्भीर है। स्वप्न और यथार्थ मानव-जीवन-सत्य के दो पहलू हैं : स्वप्न यथार्थ बनता जाता है और...
अपेक्षाएँ
कई अपेक्षाएँ थीं और कई बातें होनी थीं
एक रात के गर्भ में सुबह को होना था
एक औरत के पेट से दुनिया बदलने का भविष्य...
एक ख़्वाब की दूरी पर
इक ख़्वाहिश थी
कभी ऐसा हो
कभी ऐसा हो कि अंधेरे में
(जब दिल वहशत करता हो बहुत
जब ग़म शिद्दत करता हो बहुत)
कोई तीर चले
कोई तीर चले...
आज़ादी का आसमान
मेरी तो जान हैं
तुम्हारे ये सीने, तुम्हारे ये सिर
जो अपने सपनों के रोशनदान से
आज़ादी का आसमान
देखने को मचल रहे हैं।
तुम्हारे सिर और सीनों में...
लजवन्ती
किसी एक वक़्त की ढलान पर, क़ुदरत की गोद में एक गाँव बसा हुआ था। गाँव, गाँव के साँचे में ढला हुआ था। वे...
ईश्वर आख़िर जागता क्यों नहीं?
सूरज चोरी चला गया है,
एक जिस्म से ग़ायब है रीढ़ की हड्डी।
सत्य, अहिंसा, न्याय, शांति
सब किसी परीकथा के पात्र हैं शायद
और उम्मीद गूलर के...
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
इस बूढ़े पीपल की छाया में सुस्ताने आएँगे
हौले-हौले पाँव हिलाओ, जल सोया है छेड़ो मत
हम सब अपने-अपने दीपक...